एडवोकेसी ग्रुप 'फीडम वाच' और 'बज ग फोटोज' ने चीन के विरुद्ध टेक्सास डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में 20 ट्रिलियन डॉलर के O हर्जाने का दावा ठोका है। अमेरिकी वकील लैरी क्लेमन ने चीन सरकार, चीनी आर्मी, वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी, उसके डायरेक्टर शी चंगली, 54 साल की महिला बायोकेमिकल एक्सपर्ट मेजर जनरल चन वेई को कोरोना वायरस फैलाने का दोषी बताया है। जाहिर-सी बात है कि यह ट्रंप प्रशासन की शह पर हुआ है। चीन इसे लेकर चुप बैठेगा, ऐसा संभव नहीं दिखता। चीनी अदालत में भी टेक्सास की तरह अमेरिका के विरुद्ध मुकदमा दायर करने की तैयारी चल रही है। इससे पहले चीन 13 अमेरिकी पत्रकारों को देश निकाले का आदेश दे चुका है। ____ 18 मार्च, 2020 को वाल स्ट्रीट जर्नल, वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयार्क टाइम्स के 13 पत्रकारों के देश निकाले की घोषणा के साथ चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि इन्हें हांगकांग और मकाउ स्पेशल जोन से भी काम करने की अनुमति नहीं होगी। इससे पहले फरवरी के आखिर में अमेरिका, पांच चीनी पत्रकारों को 'फॉरेन मिशन' का आरोप चस्पां कर निकाल चुका था। यों भी 'जर्नलिस्ट वीजा' के बगैर विदेशी पत्रकारों को काम करने की अनुमति चीन में नहीं है। एक साल की अधिकतम अवधि वाले वीज़ा की हर साल विदेश मंत्रालय समीक्षा करता है, उस आधार पर उसे नवीनीकरण की अनुमति दी जाती है। चीन इससे पहले 2019 में वाल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर चुन हान वोंग, 2015 में फ्रेंच वीकली ल-ओब्स की पत्रकार ऊर्सला गोथियर और 2012 में अल जजीरा की पत्रकार मेलिसा चन को देश से निकाल चुका है। पिछले हफ्ते निकाले 13 पत्रकारों का कसूर यह है कि इन्होंने चीनी चक्षुरोग विशेषज्ञ डॉ. ली वेनलियांग की खबर छापी थी, जो कोरोना वायरस की चपेट में आने की वजह से फरवरी के शुरू में मर गये थे। 34 साल के डॉ. ली वेनलियांग को जनवरी, 2020 में स्थानीय शासन ने अफवाह फैलाने के आरोप में धर दबोचा था। डॉक्टर ली स्थानीय लोगों के बीच व्हिसलब्लोवर के रूप में हीरो बन चुके थे। विदेशी मीडिया से चीनी शासन को दिक्कत पहले भी दरपेश होती रही है। 17 साल पहले सार्स के चीन में फैलने की खबर देश से बाहर दुनिया को बताने में टाइम मैगजीन ने बड़ी भूमिका अदा की थी। उन दिनों भी एक चीनी डॉक्टर चियांग यांगयोंग व्हिसल-ब्लोवर के रूप में नमूदार हुए थे। 2003 में टाइम मैगजीन की पेइचिंग स्थित संवाददाता सुजन जैक्स को इसकी कवरेज की वजह से देश निकाला दिया गया था। चीनी सोशल मीडिया पर पहले और अभी की घटनाओं के हवाले से एक तंज प्रचलित है, 'श्वे हाओ यींग यू, लियाओ चिये चुंग क्वो', अर्थात 'चीन को अच्छे से समझने के लिए अंग्रेज़ी पढ़िये।' यह कबीरदास की उल्टी वाणी जैसी है। क्योंकि चीनी भाषा के प्रसार के वास्ते स्लोगन दिया जाता है—'चीन को अच्छे से समझने के वास्ते चीनी पढ़िये।' चीन के लिए मुसीबत ही है कि जो विदेशी पत्रकार मंदारिन जानते हैं, वे कब्र से खबरें खोदकर दुनिया को बताने में लगे हैं। दावोस में आहूत 2019 के वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम में चीन ने जानकारी दी थी कि उसकी अर्थव्यवस्था 22.37 ट्रिलियन डॉलर की है। इसी हफ्ते चीनी समाचारपत्र पीपुल्स डेली ने अपने संपादकीय में लिखा कि 2020 के शुरुआती दो महीनों में औद्योगिक आउटपुट वैल्यू 11.5 ट्रिलियन युआन की थी। यानी, चीनी मीडिया, 'स्थिति सामान्य हो रही है, यह बताने में लग गया है। मात्र तीन प्रतिशत निर्यात वाला भारतीय बाजार चीन की चिंता का विषय नहीं है, जितना कि यूरोप और अमेरिका के बाजार उसके लिए मायने रखते हैं। भारतीय बाजारों में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार हो भी जाता है तो उससे चीन की अर्थव्यवस्था बर्बाद नहीं हो जाएगी। चीन के कुल निर्यात का 17.2 प्रतिशत यूरोपीय संघ को और दूसरे नंबर पर 16.7 फीसदी अमेरिकी बाजारों को जाता है। चीन को भरोसा है कि कोरोना संकट के बाद आसियान देशों को 14.4 प्रतिशत निर्यात से वह रिकवर कर लेगा। एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया के बाद भारत का नंबर चीनी निर्यात के बॉटम लाइन में है। बावजूद इसके, अमेरिका-चीन के बीच दुष्प्रचार युद्ध सीधा-सीधा उसके निर्यात को प्रभावित करेगा, इस आशंका को दुनिया का कोई भी अर्थशास्त्री खारिज करने की स्थिति में नहीं है। इस नूराकुश्ती से ट्रंप फायदे में रहेंगे, ऐसी बात भी नहीं है। कनाडा और मैक्सिको के बाद, चीन अमेरिकी निर्यात का तीसरा बड़ा मार्केट है। 2019 के आखिर तक अमेरिका और चीन 555.25 अरब डॉलर का व्यापार कर रहे थे। उसमें से अमेरिका 106.63 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट चीन को कर रहा था। इनमें सिविलियन एयरक्राफ्ट के पास, कंप्यूटर चिप्स, सोयाबीन, माल ढुलाई वाले मोटरव्हीकल, मशीनरी पार्ट्स, सर्जरी के सामान और तेल शामिल हैं। ये अमेरिकी कंपनियां ट्रंप-शी के युद्ध में किसी नुकसान को क्यों झेलें? राष्ट्रपति चुनाव की दृष्टि से देखें तो ट्रंप इस दुष्प्रचार युद्ध में आगे चलकर नुकसान उठा सकते हैं। कुल 5.6 प्रतिशत एशियन अमेरिकन आबादी में चीनी मूल के लोग 3.79 मिलियन, दूसरे नंबर पर फिलीपींस के 3.41 मिलियन और तीसरे नंबर पर इंडियन-अमेरिकन, 3.18 मिलियन हैं। ट्रंप ने 'कोविद-19' का नाम परिवर्तन अकेले नहीं किया कि यह 'चीनी वायरस' है, बल्कि उनके विदेश मंत्री माइक पोंपियो भी इस शब्द समर में कूद पड़े थे। जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लिचियान ने बयान दिया कि अक्तूबर, 2019 में वुहान में सेवेंथ वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स हुए थे, उस दौरान अमेरिकी सैनिक कोरोना वायरस चोरी-छिपे चीन छोड़ आये थे। चीन के इस प्रोपेगंडा वार में ईरान और रूस भी हामी भर रहे हैं। इस प्रोपेगंडा वार में दुनिया के वैज्ञानिक और शोधार्थी भी बंट से गये हैं। इस वजह से यह तय करना मुश्किल हो गया है कि कोविद-19 वायरस का वास्तविक अधिकेंद्र कहां रहा है और सही कौन बोल रहा है? इस प्रोपेगंडा वार के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव को केवल चाइनीज़-अमेरिकन नहीं झेल रहे हैं। दुनिया के दूसरे हिस्से में भी घृणा के विषाणु फैले हैं। दिल्ली में एक मणिपुरी लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसे 'कोरोना' कहकर कुछ बदमाश छेड़ रहे थे। ऐसे असभ्य व्यवहार से अमेरिका तो बिलकुल अछूता नहीं है। 9 मार्च, 2020 को सैन फ्रांसिस्को में युआनयुवान जू नामक एक चीनी युवती पर जिम जाते समय 'चाइनिज वायरस' बोलकर बदमाशों ने उस पर थूका और वहां से गुज़रती बस को आवाज़ लगाई कि इसे कुचल डालो। इस घटना के बाद ट्रंप ने संतों जैसा प्रवचन दिया है कि हमें किसी समुदाय को लक्ष्य कर घृणा नहीं फैलानी चाहिए।
कोरोना जंग में अमेरिका व चीन आमने-सामने