एक कहानी:
एक माँ को पिछले दिनों बेटे ने यह कह कर घर से निकाल दिया कि "आपने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी।" माँ की ममता , उसके घर के पास ही किराये का कमरा ले लिया, आस पास के घरों में झाड़ूबुहारी कर दिन निकलने लगी, अकेले का काम चल जाता, पति तो बेटे को गोद में छोड़ कर भगवान के घर चला गया था।
समय बीतने लगा, माँ बीमार पड़ गईं , काम पर भी नही जा पा रही थीं, हिम्मत जुटा कर बेटे के घर पहुंची।
बुढ़िया को देखते ही , सारे परिवार की स्तिथी काटो तो खून नहीं जैसी।
समझ नहीं आ रहा कौन पहले बोलेगा। हिम्मत जुटा कर बुढ़िया कुछ बोलने के लिए मुँह खोलती उससे पहले बेटा बोल पड़ा.." निकल यहाँ से बुढ़िया।" बहुत हिम्मत जुटा कर बुढ़िया बोली "हाँ , जाती हूं, मुझे मेरे घर का किराया दे दो।"
ऐसा सन्नाटा पसरा कि फिर सुई की आवाज़ भी तेज़ लगे।
स्वरचित: ईवादीप सक्सेना, जयपुर
सीख: माता पिता जीवन भर चाहे जितना भी कर ले, आगे उन्हें बोझ ही समझा जयेगा।